कवि कल्पना से बढ़कर नहीं है कोई अभ्यर्थना
कल्पना यथार्थ बन हो जाती है अनमोल रचना
कई दर्द दबाये सीने में,घाव खाये रोयें रोयें में।
अन्याय अत्याचार का,विरोध व प्रतिकार का
फूटता है स्वर बताने देश समाज सरकार का
अग्नि जैसा शूल सह जीना नहीं धिक्कार का
कलम थामे कूद जाता जोश है ललकार का
हरेक युग हर काल में,कबीर रहीम जैसे कवि,
निडर हो लिखते रहे ये धर्म है कलमकार का।
कवि कल्पना से बढ़कर नहीं है कोई अभ्यर्थना
कल्पना यथार्थ बन हो जाती है अनमोल रचना

@Mukteshwar mukesh

Hindi Quotes by Mukteshwar Prasad Singh : 111719602
shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अति सुन्दर

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