वर्षा की बूंद


प्रथम दिवस वर्षा की बूंदे , रज का आलिंगन करतीं जब
मिट्टी की सोंधी खुशबू से , मन प्रेम से भर जाता है तब
नवजीवन पाते त्रीण , तरुवर , सरितायें और सरोवर भी
धरती का रूप निखरता है , हरियाली संग सजकर ही
भंवरों की गुनगुन सुनकर के , उपवन के सुमन मुस्काते हैं
देकर मौन निमंत्रण उनको , मस्ती में लहराते हैं
मन हरती वन की सुन्दरता , अद्भुत वनचरों की लीला है
आबाद रहे इनकी दुनिया , जंगल इनसे ही सजीला है
वन , उपवन , नदिया , पर्वत , हैं धरती के श्रृंगार सभी
नई नवेली दुल्हन सी , ना उजड़े इसकी मांग कभी
इसकी सुन्दरता बनी रहे , ना इसका कोई शानी हो
इसके दम पर ही जीवन है , ना अपनी ख़तम कहानी हो

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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111719073
सुधाकर मिश्र ” सरस ” 3 years ago

बहुत - बहुत धन्यवाद शेखर जी।

shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अत्यंत हृदय स्पर्शी सृजन

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