तूफान उठना चाहिए
यदि व्यवस्था सुप्त हो , चल रही चालें गुप्त हों, सब अपने स्वार्थ में लिप्त हों , जयचंद जैसे यदि तृप्त हों
तब
भगत सिंह सा बनकर एक तूफान उठना चाहिए
यदि भस्मासुर सी बुद्धि हो, विचारों में भी अशुद्धि हो
बात - बात में क्रुद्ध हो , कूप - मंडूक सी निर्बुद्धि हो
तब विवेकानंद सा बनकर एक तूफान उठना चाहिये
यदि साहित्य धार विहीन हो , मातृ- शक्ति गमगीन हो
जन आत्मशक्ति में हीन हो , या रंगरलियों में लीन हो
तब दिनकर सी लेखनी बनकर एक तूफान उठना चाहिए
जब खुद के दुश्मन हम बने , भाई - भाई बनकर ठने
यदि हर बात पर भौंहें तने , सब रहे बनकर अनमनें
तब सुभाष बोस सा बनकर एक तूफान उठना चाहिए
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