जिन्दगी की जरूरतें क्या कुछ नही करवाती ,
पूरा करने की चाहत में मैं बहुत थक जाता हूं ,
घर से निकला था मां के कदमों को चूम कर ,
कामयाब तो हो रहा हूं पर बहुत थक जाता हूं ,

पहली बार घर से दूर निकला हूं मंजिल पाने ,
चलता रहता हूं राह में पर बहुत थक जाता हूं ,
कई तरह के लोग मिले कुछ अच्छे तो बुरे भी ,
रुका नही रोकने से मैं पर बहुत थक जाता हूं ,

कुछ दोस्त बनाए हैं सुख दुःख बाटने के लिए ,
मुसीबत से अकेले लड़ के बहुत थक जाता हूं ,
एक सहारा बना रहता है इनके साथ रहने से ,
ख़ुद को तैयार कर रहा हूं बहुत थक जाता हूं ,

किराए का कमरा है बड़ी मुश्किल से मिला है ,
किसी का सहारा नही पर बहुत थक जाता हूं ,
नौकरी भी मिल गई है मेरी मां की दुआओं से ,
काम तो ठीक ठाक है पर बहुत थक जाता हूं ,

पेट तो भर जाता है यहां मिले इस भोजन से ,
मन में तसल्ली नही होती बहुत थक जाता हूं ,
स्वाद नहीं मिलता यहां मां के बने हाथों जैसा ,
कभी कभी खुद से बना के बहुत थक जाता हूं ,

Hindi Poem by Poetry Of SJT : 111718296

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