सुबह हो चली, फिर तुम याद आने लगे, झूठी ख्वाहिश फिर उठ गई। तुम मिलों एक दिन। रोज की तरह बीत जाएगा। येही सोचते हुए। मेरा दिन।

-प्रवीण बसोतिया

Hindi Shayri by प्रवीण बसोतिया : 111711190

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now