फिर वही वोझिल दिन, फिर वही रोती रात,
उदासी के कफन ओढ़े लाशों की सौगात।
ना तुम मेरे ना मैं,कहां अभी रिश्तों की बात,
जीना गर है तो ,लगा ले आदत पर आपात।

आंसू सूखे,निष्ठुर हो गये सबके सब चुपचाप,
शिशु बिलखते,पत्नी रोती,असह्य ये आघात।
क्या बूढ़ा,क्या प्रौढ, युवाओं को दे रहे संताप,
कोविड संग ब्लैक फंगस को देना होगा मात।
@मुक्तेश्वर।

-Mukteshwar Prasad Singh

Hindi Poem by Mukteshwar Prasad Singh : 111708130

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