जब तक ये रात ख़त्म होगी
टूट कर तेरी बांहों में बिखर जाऊंगी
सुनो तुम रोक लो ना आज की रात को
कल कहां फिर मैं आऊंगी
पिघल जाने दो ना आज तुम मुझे
फिर ना कहीं पत्थर बन जाऊं मैं
समेट लो ना तुम मुझे बांहों में अपनी
तुम भी तो तरसे हो ना बरसों इन राहों में
तड़प कर मिल जाओ की तडपन ये खत्म हो
मुझे फिर से तुम एक बार पूरा कर दो