किंतु कहा तक मैं करू जाति धर्म की बात गाज गीरत आगे परे
वाको सब बन दास
वाको सब है दास कोई अंधे कोई लूले
बन चाकर सरकार तिहारो
जगत अपनो भूले
बिसर गए सब जाल जन्म जंजाल कोटि बाधा अंगिंतन
मिले तिहारो धाम करत जे पावन चिंतन
कहत तिहारो दस त्याग सब भर हे प्यारे आणि परो चरणनन में उनके सांझ सकारे
करू चाकरी और सभी मिल टहल बजाओ
भूल बिसर सब दुख सुख उनके नित्य गुण गाओ
करहु सदा अरदास की विपदा दूर भगाओ

-Anand Tripathi

Hindi Shayri by Anand Tripathi : 111704000

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