कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं ।
तुझे मगर कहा कह पाता हूं ।
सच तो है , कि जीना है तेरे बगैर
पर एक पल भी कहां रह पाता हूं ।
कोशिश हर बार होती है।
तुझे भुलाने की पर एक बार भी कहा भूला पाता हूं ।
देखना चाहता हूं,
हर रात सपने में पर मैं खुद को सुला नहीं पाता हूं।
तू देख पाती तो समझ जाती
कि इस बेबसी को कहां छुपा पाता हूं ।
तू अगर देख पाती तो समझ जाती
कि इस बेबसी को कहां छुपा पाता हूं ।
छलक जाता है दर्द आंखों से कभी
छलक जाता है दर्द आंखों से कभी ,
पर मैं खामोश भी कहां रह पाता हूं ।
✍️ R.J.Vashisth ✍️