माँ
माँ का स्नेह
देता था स्वर्ग की अनुभूति।
उसका आशीष
भरता था जीवन में स्फूर्ति।
एक दिन
उसकी सांसों में हो रहा था सूर्यास्त
हम थे स्तब्ध और विवेक शून्य
देख रहे थे जीवन का यथार्थ
हम थे बेबस और लाचार
उसे रोक सकने में असमर्थ
और वह चली गई
अनन्त की ओर
मुझे याद है
जब मैं रोता था
वह परेशान हो जाती थी।
जब मैं हँसता था
वह खुशी से फूल जाती थी।
वह हमेशा
सदाचार, सद्व्यवहार, सद्कर्म,
पीड़ित मानवता की सेवा,
राष्ट्र के प्रति समर्पण,
सेवा और त्याग की
देती थी शिक्षा।
शिक्षा देते-देते ही
आशीष लुटाते-लुटाते ही
ममता बरसाते-बरसाते ही
हमारे देखते-देखते ही
एक दिन वह
हो गई पंच तत्वों में विलीन।
आज भी
जब कभी होता हूँ
होता हूँ परेशान
बंद करता हूँ आंखें
वह सामने आ जाती है।
जब कभी होता हूँ व्यथित
बदल रहा होता हूँ करवटें
वह आती है
लोरी सुनाती है
और सुला जाती है।
समझ नहीं पाता हूँ
यह प्रारम्भ से अन्त है
या अन्त से प्रारम्भ।