बहती नादिया सी ये जिंदगी भी हमारी है
कभी शांत कभी कोलहाल से भरी
यूं गुजरती जाती है
सुख और दुख और जाने कितने भावों को लिए
जैसे नदी अपने अंदर अनगिनत अवसाद लिए
कभी इस मोड़ तो कभी उस पूल से टकराती हुई
कभी लड़खड़ाती तो कभी संभलती जाती है
-अनुभूति अनिता पाठक