एक इल्तिज़ा का हक हमारा भी था
पता नही कब वो दायरे से बाहर निकल गया

चलो खरीद लेते है कोई सस्ती सी बीमारी
चारागर तो औकात के बाहर निकल गया

Hindi Shayri by Keshav Yamunapari : 111695697

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