सब बनाते घोसला
मेने है जाल बुना
जो चुभता रहता मुझे
सुलजन भी उलजन थी
खुलना ही खोना था
जाल तोड़ने आता कोई
फस जाता मेरे जाल में
साथ मेरे उलझता वो
आखिरकार उड़ जाता वो
जलती रहती में अकेली
बुनती रहती जाल गहरा
देखा किसी को मुझसे जाल में
चाहा उसे कर दू रिहा
वो आ बैठा मेरे जाल में
जाल जलाता दोनों को अब
उड़ना चाहु पर उड़ना पाऊं
जुड़ना चाहु पर जुड़ना सकू
तोडना चाहु अब ये जाल
करे जो उस राही को कैद !
-Yayawargi