रेत की तरह फिसलता ये वक़्त मेरा।
पानी के बहाव सा बहेता ये वक़्त मेरा।।

ये ज़िन्दगी की रफ़्तार बढ़ती जाती है।
और ख्वाबों को घुंघला करता ये वक़्त मेरा।।

यहां हर एक सांसों का भी ठिकाना कहां!?
और धडकनों को गुमराह करता ये वक़्त मेरा।

क्यों यादों में आंधियां बन कर खो जाता है।?
फ़िर आंखो में समन्दर सा बहेता ये वक़्त मेरा।।

शिकवा शिकायतों को भीतर दबोचे बैठा है।
न जाने क्यों!? अपनों से रूठा ये वक़्त मेरा।।
Darshana Radhe Radhe

Hindi Blog by Darshana Hitesh jariwala : 111690737

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