जाहिर कर दिया करिए...
अंतः की सुगबुगाहट को।
वो मन की पीड़ा को...
उस तन की मुस्कुराहट को।।
शब्दों से भावनाओं के धागे में गह दिया करिए...
रखकर साथ, नहीं ले जा पायेंगे उस निर्देशक के पास।
जो रखता नहीं है किसी अजनबी अपने से आस...
अच्छा यही होगा उस शोर को कह दिया करिए।।
-सनातनी_जितेंद्र मन