तुम सामने नज़रें गड़ाए बैंठी हो
जरा नज़रें हटे तो दौड़कर आऊं ।
तुम भींगी यादों में बहकर आई हो
जरा गर्मी बढ़ें तो कूदकर आऊं ।
तुम लम्बी दूरियाँ खोदकर आई हो
जरा वक्त़ मिले तो भरकर आऊं ।
तुम पुरा एहसास खोकर आई हो
जरा गहराई मिले तो डूबकर आऊं ।
तुम प्यार को टेढ़ा खोलकर आई हो
जरा दिल दिखे तो सीधा तैरकर आऊं ।
-© शेखर खराड़ी ( ५/५/२०२१)