My Wonderful Poem..!!
यारों चमन में कौन बबूलों
की डाल खींचत है
यहाँ जो भी आवत है फूलों
के ही गाल खींचत है
वक़्त चाहे अच्छा हो या बूरा
अपने ही टांग खींचत हैं
नादान मुसाफ़िर अनजान बन
जीवन व्यतीत कर देवत है
ग़मों का ढेर हो या हो ख़ुशियों
का अंबार, प्रभुजी देखत है
रस्म-ओ-रिवाजों के नाम बंदा
सिफँ प्रभुजी नमन करत है
पर चंगा-बंदा जो सच्चे दिल-से
मन-से प्रभु समक्ष झुकत है
जीते-जी तो इज़्ज़त पावत ही है
मर के भी मुक्ति पावत है
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