आकर कहने लगी शाम हम से
अपनी मेहबूबा को ज़रा छुपा के रखना
चांद आने का इंतज़ार कर रहा है
और सुरज जाने से इन्कार कर रहा है

Hindi Shayri by Amar Kamble : 111685751

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