सूरज भी अपनी खुबसुरती आसमान के कैनवास पे बिखेरे
बीच मे आई एक प्यारी सी टर्नल C जैसा जिसका आकर..
सर्पाकार हमारी रेल
और हाय वो नजारा...
फिर
चाँद को अपनी खिडकी पे टांगे रतलाम से कोटा पोहचे
खाने मे थेपले और दही थोड़े वडा पाव भी जचै
सुनता रहा हमारी बातें,
सारी रात वो बेशरम चाँद,
जब स्वेत रंग हुआ लाल
नासमझ समजे सूरज
ये अलग हि बवाल
कोटा पे आँखे हुई भारी तो हमने भी पलकों को दे दिया आराम
पापा मेरे पूरी रात जगे जब मे जागी तो मेरी हि गोद का तकिया बनाए सो गए
सफर अक्सर अपनो को करीब ला देता है नहीं !