यूँही हम जकड़े हुए थे मन से ।
दिल ने दरवाज़े खोल दिए ॥

यूँही बेपरवाह बन गये थे गुस्ताखी से ।
अपने पन का जो बोज समज बेठे थे ॥

हर लम्हा निकलता हे किसी बहाने से ।
चहेरा हे जो मुस्कान देता हे हर लम्हे पे ॥

~प्रक्रुती की ख़ुश्बू

Hindi Shayri by Saurabh Sangani : 111681312

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