ज्यादती मची हैं जिंदगानी में
भारी दिल मुझसे संभला नहीं जा रहा,
ये खुदा किसी किरदार में तो मिल जा मुझे
आज तुझसे बात किए बिना मुझसे रहा नहीं जा रहा,
अपने दोस्तों से जिक्र करते हैं मेरा
की "नफरत करता हूँ उससे
फिर भी क्यों, उसका सामने होना दिल को सुकून देता हैं"
इसे प्यार समझू या बेरुखी
जो भी हो पर आज कल अपने सुकून को फासले कौन देता हैं?
आज इश्क़ आपसे होकर भी आपसे किया नहीं जा रहा,
कहते थे वो तुम्हे दर्द के बदले दर्द मिलेगा
हालात-ए-गवाह हैं की नफरत होके भी आपसे मेरा दर्द, देखा नहीं जा रहा...!

-लक्ष्मी सवाई

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