●सुकून

जिस क़सक-ए-दिल में रफ़ुन बहोत हैं..,
हमे दरमियाँ बारिश-ए-सुकूँ भी बहोत हैं..।

शिकस्त-ब-परेशानियां तो लाखों हैं ज़िंदगी में
मग़रूर हैं पर मुसलसल हम में जुनूँ भी बहोत हैं..।

राहतें साँस की तरहा बरत रहीं हैं तो क्या..?!
कलाम आवाज़ बनी हैं-हम गुमसुम भी बहोत हैं..।

हर सहर-ओ-सुबहा तलक़ नीँद आंखों में नहीं
सुनों मेरी तन्हा रातों का तुम पर इल्ज़ाम भी बहोत हैं..।

"अलराज़" औऱ "सराहत" के साथ "काफ़िया" लिखता हूँ
दुनियां वालों इक ग़ज़ल में बहता "खूं" भी बहोत हैं..।

#TheUntoldकाफ़िया

instagram @kafiiya_

Hindi Poem by TheUntoldKafiiya : 111674956

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now