हमें सरल प्रहलाद समजकर
सतत तर्जना जो देते हैं ।
नित्य हमारी
मृदु रुजता पर
हंस हंस कर
जो रस लेते हैं ।

खंम्भे से फट पड़े
नृसिह से अब,
महदैत्य चीत्कार करेगा ॥

Hindi Religious by Saurabh Sangani : 111673960

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