अनुशासित कंधों पर बरसों बोझ संभाले
सपनों के सिरहाने धरी छलाँग उछाले
ऐ यात्री! कैसे निकलेगा यात्रा पर तू
जब तेरे पैरों. में कंपन भरा हुआ है....
डॉ प्रणव भारती 

Hindi Quotes by Pranava Bharti : 111670207

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now