इक दिन मेरा अंत लिखा यू जाएगा...
भटकेगा ये मन बेचारा, पाप कहा छुपाएगा...
खो देगा, मनवा प्यारा, देह यही रहा जाएगा...
पाप पुण्य का लेखा-जोखा सब यही हो जाएगा...
रह जाए ये कागज प्यारे, रह जाए ये कलम हमारी...

इक दिन मेरा अंत लिखा ही जाएगा...
इस कलयुग के काल चक्र से नाता ही टूट जाएगा...
रिश्ते नाते धरे रहेंगे, मनवा ये पछताएगा...
समय, समय से समय का चलना समय लौट न पाएगा..
राह जाएगा देह बेचारा, प्राण पखेरू तो जाएगा...

एक दिन तो मेरा खुद से नाता है टूट जाएगा...
शाम सवेरे राह निहारे मईया से कौन बताएगा...
चार दिन का नाता लेकर मौन बहुत पछताएगा...
किलकारी मेरे आगन की, बस आगन ही राह जाएगा...

इक कोने में बैठ कहीं, सबका मन भर आएगा...
बस कानो में, यही बात दोहराएगा...
आज मेरा तो कल तेरा भी तो आएगा...
इक दिन मेरा अंत लिखा यू जाएगा...
उजियाला सूरज सा, तेज फैलाएगा...
लिख लू नाम ज़रा, मनवा ना पछताएगा...

-Aníruddhα "कौशल्य" "ֆ"

Hindi Poem by Aníruddhα

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