प्रकृति देखो बासन्ती त्यौहार मना रही।
चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लुटा रही।
धरती बिखेर रही है छटा निराली
जंगल में छाई पलाश के फूलों की लाली
खेतों ने ओढ़ ली चादर पीली सी
कुहू कुहू बोले कोयल मतवाली।।
नव किसलय की लाली से पेड़ मुस्का रहे।
कलियों को चूमकर भौंरे गुनगुना रहे।
सर्दी के जाने से खुशनुमा हो गया मौसम
भोर की बेला में परिन्दे चहचहा रहे।।
फसलों को देख कर किसान खुश हो रहा।
सयानी बेटी की शादी का सपना बुन रहा।

स्वरचित
जमीला खातून

Hindi Poem by Jamila Khatun : 111662114
shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अति सुन्दर

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