खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं,
धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं,
ये कैंचियाँ खाक हमें उड़ने से रोकेगी,
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं।

-Vijay vaghani

Hindi Shayri by Vijay vaghani : 111661473

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