स्वयं को भूल अबतक करती
रही हर रिश्ते को बेइंतहा प्यार,
अब थोड़ी सी मुहब्बत मैं खुद से करने लगी हूँ।
निभाती रही शिद्दत से हर जिम्मेदारी,
छोड़ दिया अपना हर ख्वाब,
भूल गई अपनी तमाम ख्वाहिशें,
अब कुछ खुद के लिए मैं सोचने लगी हूँ।
व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय
अपने लिए अब निकाल लेती हूँ,
बिखरी लटों से झांकती सफेदी को,
चेहरे के उम्र की लकीरों को
बड़े प्यार से निहार लेती हूँ,
अब खुद के लिए थोड़ा सँवरने लगी हूँ।
लोग क्या कहेंगे, से डरना छोड़
चटक कपड़े पहनने लगी हूँ,
अकेले ही जाकर कभी-कभी
चाट-समोसे खाने लगी हूं,
कभी ऑनलाइन कपड़े,सामान,
पिज्जा भी मंगाने लगी हूँ,
बेवजह अक्सर मुस्कराने लगी हूँ,
हाँ, ऐसा लगता है कि अब
खुद से प्यार मैं करने लगी हूँ।
लोग कहने लगे हैं कि अब 
बुढ़ापे में मैं सठियाने लगी हूँ,
पर मुझे अब नहीं परवाह किसी की
जो समझते हैं मुझे, वे खुश हैं इन बदलावों से,
अब छोटी बातों में मैं खुश रहने लगी हूँ।
हाँ, अब खुद से मैं इश्क करने लगी हूँ।
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Hindi Poem by Rama Sharma Manavi : 111659898
ANAND SAMANI 3 years ago

Very nice your post

shekhar kharadi Idriya 3 years ago

स्त्री मन का मार्मिक चित्रण....

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