मौन --केवल मौन
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चाहती हूँ मौन से कुछ कर सकूँ संवाद
कोई भी न हो मेरे आस-पास
मौन केवल मौन हो ,मैं शब्दों की छुअन भर
होंठ मेरे बंद हों ,मैं केवल उनका प्रत्युत्तर
जीवन की तमाम रेखाएँ भाग्य सराहें
छुट -पुट करते संबंधों को खूब निहारें
मौन को बस मौन से मैं पुकारूँ
और त्रुटियों को मैं अपनी खुद सुधारूँ
जीवन की तमाम व्यथाएँ
टूटी-फूटी सारी कथाएँ गुम हो जाएं ,
बस मौन ही में कर दें खुलासा ,कौन हूँ मैं ?
मौन की अपनी कहानी
मौन ही नयनों का पानी
मौन कर लें हम नियंत्रण
मौन का चुन लूँ मैं तृण तृण
बन सकूँ समिधा मौन की....
और यज्ञ में हूँ मैं समाहित
कर सकूँ जीवन मैं अपना
मौन को ही मैं समर्पित ।
डॉ. प्रणव भारती