मां, मैं तुम्हारी बेटी हूं,
परछाईं नहीं बनूंगी तुम्हारी।
तुमने खपा दिया खुद को,
उन रिश्तों को सहेजने में,
जिन्होंने तुम्हें तनिक मान भी नहीं दिया,
देखा है मैंने तुम्हारी आँखों की नमी को,
तुम्हारे अस्तित्व को टुकड़े हो बिखरते,
महसूस करती हूँ तुम्हारे छटपटाते मन को,
तुम्हारे मौन की अव्यक्त विवशता को,
हृदय की असीम विह्वलता को,
मैं आवाज बनूंगी तुम्हारी खामोशी की,
तुम्हारे सपनों को पूर्ण करूंगी मैं, मां,
तुम्हारी परवरिश को सार्थक करके,
तुममें भर दूंगी गर्व का ऐसा अहसास,
नाज से कह सकोगी,देखो, यह मेरी बेटी है,
मेरी परछाई नहीं, मेरा अभिमान है मेरी बेटी।