हम, कलम के सिपाही हैं, कलम को रोक नहीं सकते।
जन जन को जगाना है, कलम को तोड़ नहीं सकते ।
संघर्षों के डर से, कलम को छोड़ नहीं सकते।
चाहे, मेरी हस्ती को मिटा दो, कलम को झूका नहीं सकते।
-विवेकानंद राय

Hindi Poem by vivekanand rai : 111650478

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