कोरोना काल के बाद पहली बार कोई पारिवारिक प्रसंग में शामिल हुए
किसी कोने में बैठ सब के बदलाव देखे,
सब एक सा जीवन तो जी रहे है
जैसा सब जीते थे
जिन्हो ने अपने प्यार से शादी की वो भी
जिन्हो ने शादी से प्यार किया वो भी
सब का एक सा जीवन
बस किसी के बच्चे बड़े तो किसी के छोटे
आमदनी के हिसाब से जरूरते और शौख
और इसी हिसाब से लिबास
जो है उससे ज़ादा दिखने की बेफिज़ूल कोशिश
मानो एक दलदल में सने दबे पड़े हो सब
और बाकि को उसी भीड़ में
शामिल करने को बड़े ही उत्सुक
मेरे ख्यालो के अब तो पुलाव बासी से लग रहे है
मुझे भी सब दलदल में खींचे जा रहे है
में बेमन सी धसती जा रही हूँ
चिल्ला ने पे बेआवाज़ हो रही हूँ
में भी एक सा जीवन जीती जा रही हूँ
-Yayawargi
(Divangi joshi)