रखी थी हमने दोर कच्चे धागे की रिस्ते में ।
उसने गाँठ एसी लगायी हमें क्या पता ॥

वोतो रिस्ता हम यूँही निभाते रहे ।
उसने रिस्ता-ए-महोबत बना दिया ॥

~ प्रक्रुती की ख़ुश्बू

Hindi Shayri by Saurabh Sangani : 111648762

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