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तू ही रूह में बसता है मेरे
तेरी ही जुस्तजु इन आँखों को है
मैं तेरे साए में यूँ ही ठहर जाऊँ
मुरझायें फूलों को देख मैं रुक जाऊँ
गम ये नही कि तुम मेरे न हुये
पर तेरे आशिकों में शुमार हम हुये
तेरी बेरुख़ी इस कदर क्यों हमसे
क्या मेरी ख़ता इश्क़ करना गुनाह था तुमसे,
-दिलीप कुमार