रंगी नज़ारा जैसे सुबह की अज़ान हैं,
बनारस के घाट की मस्तानी उजान हैं।

कुल्हड़ के चाय सी मीठी वो याद मेरी,
गाँव के पार जैसे मेरा वो मकान हैं।

रिश्तों के धागे यें कब टूट-गिर जाते,
दिलों में अब उसके थोड़ी थकान हैं।

रेत में मृग ख़ुद की ज़िन्दगी को ताके,
दिल में वृंदावन का कान्हा किसान हैं।

कुए के गहन से कई पीढ़ी जो तकती,
मेरा नमन उन सबको जो अंज़ान हैं।

Vinay Tiwari
From “धूल से धूप तक”

Hindi Shayri by Vinay Tiwari : 111644965

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