#शब्दरंग
कभी बिन पंख ही उड़ जाता है,
कभी गहरे संमदर में गोते लगाता है।
खुद ही उलझता है, खुद ही सुलझता है,
कभी इस डगर, कभी उस डगर खुद ही भटकता है।
अन्जानी कसक के पीछे, अन्जानी राहों में,
अन्जाने मिलन की आस में न जाने कहां दौडता है।
बावरा मन मेरा न जाने क्या सोच रहा है,
कुछ थम सी गई है जिंदगी, पर वो चलता रहता है।
-Dr Hina Darji