गणतंत्र

न भटकें हम कभी कर्तव्य पथ से , अपने जीवन में
करें पुरुषार्थ जीवन में , न कोई दुविधा हो मन में
नहीं बदलेगा अपना भाग्य , बैठे हुए आंगन में
जगना और जगाना होगा , राष्ट्र - प्रेम जन - जन में
समर्पित स्वयं होना है , है जब तक प्राण इस तन में
मिटना है इसी माटी में , जहां है ईश कण - कण में
न हो कोई बड़ा छोटा , रहे ना कोई भी पतन में
परेशां हो न कोई भी , मिलकर रहें इस जतन में
बढ़े उत्कर्ष हम सबका , गांठ में बांध लें यह मंत्र
नहीं कोई रोक सकता राह , बढ़ता रहे यह गणतंत्र

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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111644662
सुधाकर मिश्र ” सरस ” 3 years ago

धन्यवाद शेखर जी।

shekhar kharadi Idriya 3 years ago

अति उत्तम सृजन...

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