मुसाफिर कल भी था, मुसाफिर आज भी हूँ;
कल अपनों की तलाश में था, आज अपनी तलाश में हूँ।
न जाने कौन सी शोहरत पर आदमी को नाज है, जबकि आखरी सफर के लिए भी आदमी औरों का मोहताज है

-Prerna Verma

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