मित्रो ! बहुत दिनों से गीत लिखे ही नहीं जा रहे थे ,न जाने कैसे दो दिन पूर्व निम्न गीत की रचना हुई | माँ शारदे को नमन करते हुए आप सब तक इस गीत को पहुँचाने का प्रयास ;
बहुत दिनों के बाद
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बहुत दिनों के बाद शब्द ने दस्तक दी
झांझर मुस्काए हैं पल भर अर्थों में
आज पकड़ लूँ फिर जाने न दूँ उनको
खो जाऊं उनमें मैं जी लूँ हर पल को
बहुत दिनों के बाद पवन अंगड़ाई है---
बहुत दिनों के बाद कलम मुस्काई है।------
संध्या घिर आई थी प्रातः उपवन में
घोर घटाएं छाईं मन के आँगन में
रिश्तों की बंदनवारेंं टूटीं थीं सारी
आज किसी ने कर दी ज्यूं तुरपाई है
बहुत दिनों के बाद कलम मुस्काई है --------
राग द्वेष ने डेरा डाला था भीतर
मन का चकरा घूम रहा था फर फर फर
बहुत दिनों के बाद सांझ त्योहार हुई
बहुत दिनों के बाद छमक छनकाई है....
बहुत दिनों के बाद कलम मुस्काई है ------
साँसों के सुंदर-वन बोझिल सा जीवन
सप्त-राग से वंचित था मन का प्राँगण
बहुत दिनों के बाद ईश का संदेशा
बहुत दिनों के बाद बदरिया छाई है.....
बहुत दिनों के बाद कलम मुस्काई है -------
डॉ. प्रणव भारती