" कलम "

उपहास उड़ाओ मत इसका , इसको न चुनौती देना तुम
छोटी हस्ती इसकी बेशक़ , इतिहास है रच देती ये कलम
अनगिनत घाव अनवरत हुए , इतिहास बदलने की खातिर
यह धर्म सनातन मिट न सका , शक्ति को बताती है ये कलम
कितने निज़ाम आए , बदले , इसकी हस्ती कभी झुकी नहीं
ज्ञान - दीप कभी बुझ न सका , यह अलख जलाती रही कलम
परतंत्र हुए कारण हो कोई , विश्वास हमारा डिगा नहीं
वन्देमातरम् का हुंकार उठा कर , रीति निभाती रही कलम
शमशीरों की औकात ही क्या , तन मिटे तो कोई फ़र्क नहीं
यदि मन बदले , बदले दुनिया , यह फ़र्ज़ निभाती रही कलम
संशय न रहे कोई मन में , ना कोई दुविधा रहे कभी
है अनंत इसका शक्ति पुंज , समय का रुख मोड़ती रही कलम

___________

Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111632225
shekhar kharadi Idriya 3 years ago

उत्कृष्ट प्रस्तुति..

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now