आया मेरा बलम परदेशी , उडूं पतंग जैसी , खुशी का कोई ओर ना छोर
मैं गाऊं गीत मिलन के , चलूं मैं बन - ठन के , नाचे रे मेरे मन का मोर
मैं इठला के चलूं संग सखियां , छुपाऊं मन की बतियां , वो विनती करें दोनों कर जोर
वो जल - जल के देती मुझे गाली , बनके मैं चलूं मतवाली , ना बांध सके मुझे कोई डोर
कुछ सूझे ना खुशी के आगे , अब मेरे भाग जागे , छलके है प्यार ले - ले हिलोर
छूटे ना साथ पिया का , संग ज्यों बाती - दिया का , गम की घटा चाहे छाए घनघोर

__________

Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111618905

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now