अब तो उसकी दीद को भी एक ज़माना हो गया ।
बनते बनते वाक़या भी एक फ़साना हो गया ।।

हम गए तो थे पर उनका दर नहीं हम पर खुला
यूँ समझिए इस बहाने आना-जाना हो गया ।

जी को लगता था कि रोना तो बड़ा आसान है
रोए तो आँखों के रस्ते खूँ बहाना हो गया ।

हम अभी ज़िन्दा है मरने की कोई सूरत नहीं
क्यूँ लगा दुनिया में अपना आबो-दाना हो गया ।
कांतिमोहन 'सोज़'

Hindi Shayri by Rakesh Thakkar : 111618080

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