मैंने न पहल की थी न कोई चाहत रखी थी
बेवक़्त नज़रो का चाल था या उसकी बातों का सिला ...
अब जो मोहब्बत की थी उसकी रूह के हर अणु से की थी |
माना... उसकी चाहत मेरी तरह न थी
मगर उसके अदाओं से मोहब्बत मैंने ही हर तलक की थी ..
वो गैर था गैर ही सही ....उसे पाने की चाहत मैंने हर जनम की थी |
उसके साथ गुज़रा हर पल सहेजा है मैंने ...
अब भी उसकी ही अदाओं पर फ़िदा होने की हिमाकत मैंने रखी थी..
वह था , है और रहेगा ...
इसकी इज़ाजत मैंने मेरे दिल से पूछ ली ||
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