#मन
#आजाद
#परिंदे
कहीं पे है बंदिशें ,
कहीं पे है रंजिशे।

ऐ मेरे मन तू आजाद होकर भी,
तू आजाद कहां?

आसमान के परिंदे होकर भी,
जमीं पर चुगने की है हसरतें !

कहीं इच्छाओं में कैद है,
कहीं माया का जाल है,
कहीं संतोष का अकाल है ,
कहीं मजबुरियो की बेड़ीआ ।

ऐ मेरे मन तू आजाद होकर भी,
तू आजाद कहां?
महेक पारवानी

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111611194

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