कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल...
जिसे भी देखिए वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल...
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल...
तेरे जहान में ऐसा नहीं के प्यार ना हो
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल...