मैं अक्सर सोचती हूँ
तुम पर
कोई कविता नज़्म या ग़ज़ल लिखूँ

और

हर बार लफ़्ज़ों के पिटारे से
वो लफ़्ज़ नहीं ढूंढ पाती

जिससे मैं बयाँ कर सकूँ
तुम्हारी मुकम्मल शख्शियत

शायद तुम लफ़्ज़ों के दायरे में सिमट जाओ

ऐसे भी तो नही हो ना तुम
यूँही मेरे दिल के आसमाँ में उड़ते हो

मेरे लिए आज़ाद परिंदे ही अच्छे हो

Hindi Shayri by S Kumar : 111608947

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