दरख्तों से पत्ते भी अब बिछड़कर गिरने लगे है
दरिया से साहिल भी छूटकर बिछड़ने लगे हैं।
कहीं देर न हो जाये आने में तुझको ए साथी
क्योंकि टूटकर हम भी अब बिखरने लगे हैं

Hindi Shayri by Apoorva Singh : 111607648

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