मर गए
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पलकें उठी कि मर गए
नज़रें मिली कि मर गए
कारवाँ सब बिछड़ गया
मंज़िल खोई कि मर गए
मुंतज़िर थे उन आँखों के
आहट सुनी कि मर गए
लाखों में हैं एक वो हसीं
नज़र अटकी कि मर गए
दिल उनको दे कर, मेरी
जान पे बनी कि मर गए
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-सन्तोष दौनेरिया
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