सिकायत का दर्जा मेरे सीने में चुभ रहा है,
काबिल नहीं इश्क़ के दौर के सपने देखने में।

ये हुकूमत की इन गवाही के बंध नजरो के पर्दे में,
यूँ सलामत रहकर पूरा ना हो सके सब्र इम्तिहान में।

जिंदगी के लम्हे में जख्म ले किए जाए खुद से तय करने में,
खुदा की बिछाई हुई जाल उसको पार किया जाए हर सदमे में।

विश्वाश रख जान कर अंजान बन मर मिटा जाए इश्क़ के मामले में,
खुश रखकर अफसाना खुदा के इश्क़ का जूठा बताया जाए जान ए दिल से प्यार करने में।

DEAR ZINDAGI 🤗❣️

Hindi Shayri by Dear Zindagi : 111596228

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