शुरू हुआ सलीका प्यार करने के लिए,
दर्द उसके खुद के रूह में दफना के लिए,
उसे हर हालात में खुश रखने का किस्सा बनने के लिए,
हिस्से के लिखावट में उसे दोहरा कर जहाँ दिखाने के लिए,
मिलकर भी ना मिला राहबर मुझे सताने के लिए,
गलत राह चुनने के किसी खयाल का लम्हा ना आने के लिए,
चाह ना चाहत का दिल में यूँ बेकरार करने के लिए,
मचल रहा हर कोई कई डायरे से उसको ही पाने के लिए,
मिला हो गर ए महोब्बत का ज्ञान निराला करने के लिए,
सँवार दो उसे सुबह साम रात को उसे जगाने के लिए,
इस तरह तड़पाया करते जिस्म ए रूह की इम्तिहान लिए,
जाया क्यू करते हो अपनी ताकत से यूँ बेकरार करने के लिए,
बेबस नादान बेवजह क्यू सताए जा रहे दिल के राहत के लिए,
लूट रही इज्जत बदनाम कर खुद से नज़रे ना मिलने के लिए,
राहों में फूलो को काटे की तरह टूट रही चिल्लाई जाने के लिए,
कोई देख कर भी नहीं आए उसकी आत्मा को चीख से मरते बचाने के लिए,
किसी और के जज्बात में कैसे हसीन पल का ख्वाब त्याग कर उसे बचाने के लिए,
मुसाफिर बना हूँ तुझे कैसे दिल से जोड़ दूँ नजरिया देख कर में खुद से नज़रे फेरने के लिए।
DEAR ZINDAGI 🤗❣️